वृषभ जातक के तीसरे स्थान,जिसे पराक्रम स्थान भी कहते है की राशि कर्क आती है| पराक्रम स्थान को छोटे भाई-बहन का स्थान भी कहते है| इसे बुद्धी से लाभ का स्थान, सन्मान से लाभ का स्थान भी कहते है। इसे भाग्य के जीवनसाथी का स्थान भी कहते है।
वृषभ जातक के तीसरे स्थान की राशि कर्क का क्षेत्र 90 अंशो से 120 अंशों का रहता है| इसलिये वृषभ जातक का पराक्रम महिला पक्ष के सहयोग से, उत्तर दिशा से, जल तत्व की वस्तुओं, सफेद रंग की वस्तुओं के सहयोग से, चन्द्रमा के शासन में बढ़ता है। जो प्राणी अपने पराक्रम में सफलता पाना चाहता है उसने अपनी राशि की अंगुठी अथवा अपनी राशि का लॉकेट धारण करके अपना कार्य करना चाहिये अथवा अपने पराक्रम स्थान की राशि कर्क की अंगुठी एवं लॉकेट धारण करें|
पराक्रम स्थान की राशि कर्क में पुनर्वसु नक्षत्र का चौथा चरण,सम्पुर्ण पुष्य नक्षत्र एवं सम्पुर्ण आश्लेषा नक्षत्र आते है। इनके स्वामी गुरू, शनि एवं बुध है। जिस वृषभ जातक को अपने पराक्रम में सफलता नही मिल पा रही है उन्होंने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिए अपने आसपास के क्षेत्रों के प्राणियों के लिये पीने के पानी की व्यवस्था करवाने में अपना सहयोग देना चाहिए। जिन्हें पानी से परेशानी है अपना घर सुधारने में सहयोग देना चाहिये|कर्क राशि की अमावस को कर्क राशि को आहुति देना चाहिए तथा पुनम को कर्क राशि का अभिषेक करना चाहिए|
- पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी चन्द्रमा है। जिनका जन्म कृत्तिका नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उनका पराक्रम पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में चन्द्रमा के सहयोग से बढ़ेगा। वृषभ जातक ने पराक्रम में सफलता पाने के लिए अपनी माँ तथा जीवनसाथी की माँ को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में उनके जन्म दिन के समय देना चाहिए। चन्द्रमा का नियंत्रण परिवार में माँ पर है तथा माँ दो होती है| पहली अपनी स्वयं की माँ एवं दूसरी जीवनसाथी की माँ।
- पुष्य नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी सुर्य है। जिनका जन्म कृत्तिका नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हें अपने पराक्रम में सफलता पुष्य नक्षत्र के पहले चरण में सूर्य के सहयोग से मिलेगी। सुर्य का नियंत्रण परिवार में पिता पर है तथा पिता दो होते हैं एक अपने स्वयं के पिता एवं दूसरे जीवनसाथी के पिता| इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिए अपने एवं जीवन साथी के पिता को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिए।
- पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी बुध है। इसलिये जिस वृषभ जातक का जन्म कृत्तिका नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हे अपने पराक्रम में सफलता पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलेगी। बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है। पहली स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन इसलिये वृषभ जातक ने अपने पर जीवनसाथी की बहन इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम में ममभावक सफलता पाने के लिए अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिए। दरअपनी तथा जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिए।
- पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है। इसलिये जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र पहले चरण में हुआ है उन्हें अपने पराक्रम में सफलता पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगी|शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है| इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिए अपने जीवनसाथी को उनके जन्म दिन के समय उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिए।
- पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है। जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र के दूसरे चरण मे हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगी। परिवार में मंगल का नियंत्रण भाई पर है तथा भाई दो होते है। पहला भाई स्वयं का भाई तथा दूसरा भाई जीवनसाथी का भाई| इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये|अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिए।
- आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है, उन्हे अपने पराक्रम में सफलता आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगी। परिवार में गुरू का नियंत्रण बुजुर्गों पर है। बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने स्वयं के एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग। इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिए अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देवे।
- आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है उन्हे पराक्रम में सफलता आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगी। शनि का नियंत्रण कर्मचारियों पर है| कर्मचारी दो होते है। पहले अपने यहाँ काम करनेवाले अथवा अपने साथ काम करनेवाले तथा दूसरे जीवनसाथी के यहाँ अथवा उनके साथ काम करनेवाले| इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये अपने तथा जीवनसाथी के परिवार के कर्मचारियों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिए।
- आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस वृषभ जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उन्हे अपने पराक्रम में सफलता आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगी| इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये अपने आसपास के किसी भी अनजान बेकार मनुष्य को कर्म करने लायक बनाना चाहिये,जिससे वह कर्म करके अपना गृहस्थ जीवन चला सके |
- आश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरू है। जिस वृषभ जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र दूसरे चरण में हुआ है, उन्हे अपने पराक्रम मे सफलता आश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगी| इसलिये वृषभ जातक ने अपने पराक्रम मे सफलता पाने के लिए अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिए। गुरू का नियंत्रण परिवार के बुजुर्गों पर है। बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवन साथी के परिवार के बुजुर्ग।
सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाल
(राशिधाम)