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Vrushab Rashi aur Jyotish-Dasvaa Sthan (Karm Sthan)

ज्योतिष ज्ञान में जन्म कुण्डली के दसवाँ भाव, जिसे कर्म स्थान कहते है। इसे पिता का स्थान, सासु माँ का स्थान, जीवन में उँचाई पाने का स्थान भी कहते है। इसे खर्च से लाभ का स्थान, जीवनसाथी के सुख का स्थान भी कहते है। इस प्रकार कर्म स्थान, जिसे १० वा स्थान कहते है के करोड़ों नाम है।

   वृषभ जातक के कर्म स्थान की राशि कुंभ आती है। कुंभ राशि की दिशा पश्चिंम है। इसलिये वृषभ  जातक ने प्रतिदिन अपने कर्मस्थान की दिशा पश्चिम को नमन करना चाहिये तथा अपने कर्मस्थान दुकान, कार्यालय आदी में राशिधाम की घड़ी खरीदकर पश्चिम दिशा में लगाना चाहिये एवं प्रतिदिन उसमे स्थित कर्मस्थान की राशि कुंभ को अपनी राशि वृषभ की अगर्बत्ती लगाकर सच्चे मन से नमन करे।

   इससे वृषभ जातक अपने मानव जीवन में नई उँचाई पा सकता है। जो वह चाहता है। खुद का अनुभव की सच्चाई है तथा कर्म श्रेष्ठ है एवं बुद्धी गौण।

   वृषभ जातक के कर्मस्थान की राशि कुंभ में धरिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, सम्पूर्ण शतभिषा नक्षत्र एवं पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के पहले तीन चरण आते हैं जिनके स्वामी मंगल, राहु एवं गुरू है। वृषभ जातक ने कर्मवादी प्राणी बने रहने के लिये प्रतिदिन अपने आसपास की गाय अथवा बैल की सेवा करना चाहिए।

  • धरिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस वृषभ जातक का जन्म कृत्तिका नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में सफलता धरिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगी। शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है। इसलिये वृषभ जातक ने अपने कर्मों में मनभावक सफलता पाने के लिये अपने जीवनसाथी को उनकी राशि का ताम्बे, चाँदी अथवा सोने का पवित्र सिक्का उपहार में देना चाहिये।
  • धरिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है। जिस वृषभ जातक का जन्म कृत्तिका नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है,उन्हे अपने कर्मों में सफलता धरिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगी। वृषभ जातक ने अपने कर्मों में सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि का पेन उपहार में देना चाहिये। ध्यान रहे मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। तथा भाई दो होते है। पहले अपने भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई।
  • शतभिषा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। जिस वृषभ जातक का जन्म कृत्तिका नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हे अपने कर्मों में सफलता शतभिषा नक्षत्र के पहले चरणे में गुरू के सहयोग से मिलेगी। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्ग पर है। बुजुर्ग दो होते है। पहले स्वयं के परिवार के तथा दूसरे जीवनसाथी के परिवार के| इसलिये वृषभ जातक ने अपने कर्मों में सफलता पाने के लिये उन्हे उनकी राशि की पुस्तक उपहार में देवे|
  • शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है,उन्हे अपने कर्मों में सफलता शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण में शनि  सहयोग से मिलेगी। शनि का नियंत्रण कर्मचारियों पर है। कर्मचारी दो होते है। पहले अपने परिवार में काम करनेवाले तथा दूसरे जीवनसाथी के परिवार में काम करनेवाले|वृषभ जातक ने अपने कर्मों मे मनभावक सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मचारियों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये।
  • शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है,उन्हे अपने कर्मों में सफलता शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगी| वृषभ जातक ने अपने कर्मों में मनभावक सफलता पाने के लिये अपने आसपास के किसी भी अनजान बेकार इन्सान को कर्मवादी बनाने में अपना सहयोग देना चाहिये,जिससे वह मेहनत से कर्म करके अपनी गृहस्थी चला सके|
  • शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरू है। जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में सफलता शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगी। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है | बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग तथा दुसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग|वृषभ जातक ने अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिए अपने जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में दे।
  • पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी मंगल है। जिस वृषभ जातक का जन्म रोहिणी नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है,उन्हें अपने कर्मों में सफलता पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के पहले चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगी|मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दुसरे जीवनसाथी के भाई|वृषभ जातक ने अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशी का ताम्बे, चांदी अथवा सोने का पवित्र सिक्का उपहार में देना चाहिये।
  • पुर्वाभाद्रपद पक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस वृषभ जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में सफलता पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दूसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगीं शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है। वृषभ जातक ने अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपने जीवनसाथी को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देना चाहिये|चाहे लॉकेट ताम्बे, पीतल, चांदी अथवा सोने का हो|
  • पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी बुध है। जिस वृषभ जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में सफलता पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलेगी |बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है। पहली अपनी स्वयं की बहन तथा दूसरी जीवनसाथी की बहन |जो वृषभ जातक अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता चाहता है उसने अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये।

 सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाल
(राशिधाम)

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