ज्योतिष ज्ञान की गंगा में जन्मपत्रिका के ग्यारह वे स्थान को लाभ स्थान कहते है। इसे बड़े भाई, बड़ी वधू, जवाईराजा का स्थान भी कहते है। इसे पिता का तथा सासू माँ का धनस्थान, ससुराल का सुखस्थान भी कहते है। इस प्रकार जन्म पत्रिका में ग्यारह वे स्थान के हजारों हजारों नाम है, जो समय के है परिवर्तन के साथ समय समय पर उपयोग में आते है ।
सिंह जातक के लाभ स्थान की राशि मिथुन है । मिथुन राशि की दिशा पश्चिम है इसलिये सिंह जातक ने अपना लाभ बढ़ाने के लिये प्रतिदिन पश्चिम दिशा को नमन करना चाहिये | मिथुन राशि की निशानी मनुष्य योनी में नर सब मादा है। हमारा जन्म मानव योनी में मम्मी-पप्पा से हुआ है। इसलिये सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपना लाभ बढ़ाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के माता-पिता को राशिधाम की पवित्र घड़ी उपहार में देवे | जिनके माता पिता पृथ्वी पर नहीं है, उन्होंने उनकी स्मृति में राशिधाम की घड़ी अपने घर से पश्चिम दिशा में जो सार्वजनिक स्थान है, वहाँ पर उपहार में देना चाहिये।
मिथुन राशि की अमावस जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन मिथुन राशि को आहुति देना चाहिये। मिथुन राशि की पूनम जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन मिथुन राशि का अभिषेक करना चाहिये । अपने जन्म स्थान से पश्चिम दिशा में राशिधाम का निर्माण एवं विस्तार में अपना सहयोग निःस्वार्थ भावना से देवे।
मिथुन राशि मे मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, सम्पूर्ण आर्द्रा नक्षत्र तथा पुनर्वसु नक्षत्र के पहले तीन चरण आते है, जिनके स्वामी मंगल, राहु एवं गुरू है।
१) मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस सिंह जातक का जन्म मघा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में लाभ मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगा । शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी एवं मित्रों पर है। सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में मनमाफिक लाभ पाने के लिये, जीवनसाथी तथा मित्रों को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये।
२) मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है। जिस सिंह जातक का जन्म मघा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में लाभ मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगा । सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में मनमाफिक सुख पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये । ध्यान रहे मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई ।
३) आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। जिस सिंह जातक का जन्म मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में आर्थिक लाभ आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगा । गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है । बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग | सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में मनमाफिक आर्थिक लाभ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देवे ।
४) आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है । जिस सिंह जातक का जन्म मघा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का लाभ आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगा । शनि का नियंत्रण परिवार में कर्मचारियों पर है | कर्मचारी दो होते है । पहले अपने परिवार में काम करनेवाले कर्मचारी एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार में काम करनेवाले | सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में मनमाफिक लाभ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मचारियों को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देवे ।
५) आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस सिंह जातक का जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का लाभ, आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगा । शनि का नियंत्रण प्राणी के कर्मों पर है | परिवार में कर्मवादी प्राणी दो होते है। पहले अपने परिवार के कर्मवादी प्राणी तथा दूसरे जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी प्राणी | सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में मनचाहा लाभ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी सदस्यों को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देवे ।
६) आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरू है। जिस सिंह जातक का जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का लाभ आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगा । गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है । बुजुर्ग दो होते है । पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग । सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों मनमाफिक लाभ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये ।
७) पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी मंगल है। जिस सिंह जातक का जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का लाभ पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगा | मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई। सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का मनमाफिक लाभ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये।
८) पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस सिंह जातक का जन्म पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का लाभ पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगा । शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी एवं मित्रों पर है। सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का मनमाफिक लाभ पाने के लिये जीवनसाथी एवं मित्रों को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देवे ।
९) पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी बुध है। जिस सिंह जातक का जन्म उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों का लाभ पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलता है | बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है । बहन दो होती है। पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन | सिंह जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों से सुख पाने के लिये अपनी एवं जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में ।
– सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)