आरति करत यसोदा प्रमुदित,फूली अङ्ग न मात।
बल-बल कहि दुलरावतआनन्द मगन भई पुलकात॥
सुबरन-थार रत्न-दीपावलिचित्रित घृत-भीनी बात।
कल सिन्दूर दूब दधिअच्छत तिलक करत बहु भाँत॥
अन्न चतुर्विध बिबिधभोग दुन्दुभि बाजत बहु जात।
नाचत गोप कुम्कुमाछिरकत देत अखिल नगदात॥
बरसत कुसुम निकर-सुर-नर-मुनि व्रजजुवती मुसकात।
कृष्णदास-प्रभु गिरधर कोमुख निरख लजत ससि-काँत॥