ज्योतिष ज्ञान में जन्म पत्रिका के तीसरे स्थान को पराक्रम स्थान कहते है । इसे छोटे भाई-बहन का स्थान , बुद्धी से, सन्मान पक्ष से लाभ का स्थान भी कहते है। इसे जीवनसाथी का भाग्य स्थान भी कहते है।
मिथुन जातक के पराक्रम स्थान की राशि ‘सिंह’ है । सिंह राशि की दिशा ‘पूर्व’ है | इसलिये मिथुन जातक को अपने पराक्रम में मनमाफिक सफलता अपने जन्म से पूर्व दिशा में मिलती है पराक्रम स्थान की राशि ‘सिंह’ है ,जो स्थायी राशि है। इसलिये जो मिथुन जातक अपना कार्य पूर्व दिशा से शुरू करता है उसका पराक्रम स्थायी रहता है। सिंह राशि का तत्व ‘अग्नि’ है। अग्नि का स्वभाव नीचे से उपर उठने का है | परिणाम मिथुन जातक अपने गृहस्थ जीवन में अपने पराक्रम से नई उँचाई प्राप्त करता है। सिंह राशि पुरूष राशि है। इसलिये मिथुन जातक को अपने पराक्रम में सफलता पुरूष वर्ग के सहयोग से विशेष मिलती है| सिंह राशि का क्षेत्र 120 अंशो से 150 अंशो के मध्य का है | परिणाम मिथुन जातक को अपने पराक्रम में सफलता उपरोक्त अंशो में आनेवाले क्षेत्रों से मिलेगी।
सिंह राशि में सम्पूर्ण मघा नक्षत्र,सम्पूर्ण पुर्वा फाल्गुनी नक्षत्र एवं उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का पहला चरण आता है | जिनके स्वामी केतू , शुक्र एवं सूर्य है।
१) मघा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी मंगल है | इसलिये जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता मघा नक्षत्र के पहले चरण में ,मंगल के सहयोग से मिलेगी। मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है । भाई दो होते है । पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई | इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई का अपमान जाने अन््जाने में न करे।अन्यथा उन्हें असफलता का सामना करना होगा।
२) मघा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी ‘शुक्र’है। जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता मघा नक्षत्र के दूसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगी।शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है|इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिए जाने अनजाने में भी जीवनसाथी का अपमान न करें|अन्यथा उन्हें असफलता मिलेगी|
३) मघा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी “बुध’है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता मघा नक्षत्र के तीसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलेगी| बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर हैं|बहन दो होती है।पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन|इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन का अपमान नहीं करना चाहिये|
४) मघा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी ‘चन्द्रमा’ है। जिस मिथुन जातक का जन्म आरा नक्षत्र के दूसरे चरण मे हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता मघा नक्षत्र के चौथे चरण में ‘चन्द्रमा’ के सहयोग से मिलेगी। चन्द्रमा का नियंत्रण परिवार में ‘माँ’ पर है। माँ दो होती है। पहली अपनी स्वयं की माँ तथा दूसरी जीवनसाथी की माँ|इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की माँ का अपमान जाने अनजाने में नहीं करना चाहिये|
५) पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी ‘सूर्य’ है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के पहले चरण में,सूर्य के सहयोग से मिलेगी| सूर्य का नियंत्रण परिवार में पिता पर है। पिता दो होते है|पहले स्वयं के पिता एवं दूसरे जीवनसाथी के पिता|इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिए अपने तथा जीवनसाथी के पिता का अपमान नहीं करना चाहिये।
६) पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी “बुध’ है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के दूसरे चरण में ‘बुध’ के सहयोग से मिलेगी|बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है। पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन। इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये जाने अनजाने में अपनी तथा जीवनसाथी की बहन का अपमान न करें|
७) पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी ‘शुक्र’ हैं| जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के तीसरे चरण में ‘शुक्र’ के सहयोग से मिलेगी|शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है। इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये जाने अनजाने में भी जीवनसाथी का अपमान नहीं करना चाहिये। अन्यथा असफलता मिलेगी।
८) पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल हैं | जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है,उन्हें अपने पराक्रम में सफलता पुर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगी|मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई|इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये, अपने एवं जीवनसाथी के भाई का अपमान नहीं करना चाहिये।
९) उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी ‘गुरू’ है।जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है,उन्हे अपने पराक्रम में सफलता उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के पहले चरण में ‘गुरू’ के सहयोग से मिलेगी| गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है|बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग इसलिये मिथुन जातक ने अपने पराक्रम में मनमाफिक सफलता पाने के लिये जाने अनजाने में अपने तथा जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों का अपमान नहीं करना चाहिये।
सच्चाई के सेवा में>
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)