ज्योतिष ज्ञान में जन्म पत्रिका के सातवे स्थान को विवाह स्थान कहते है। इसे मित्रों का स्थान,समाज का स्थान,जीवनसाथी का स्थान,भाग्य से लाभ का स्थान भी कहते है। इसे नानी का स्थान,दादाजी का स्थान भी कहते है। इसे सन्मान का,पराक्रम,अपनी बुद्धी के पराक्रम का स्थान भी कहते है। इस प्रकार सातवे स्थान के हजारों,लाखों नाम है|जो ज्योतिष ज्ञान में समय समय पर उपयोग में आते है|
मिथुन जातक के विवाह स्थान की राशि धनु आती है।धनु राशि की दिशा पूर्व है। इसलिये मिथुन जातक का विवाह अपने जन्म स्थान से पूर्व दिशा में होता है। मिथुन जातक ने अपने जीवनसाथी से मधुर सम्बध बनाकर रखने के लिये,सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये प्रतिदिन दोनों समय,जो भोजन बनाते है, उसका भोग उस अग्नि को लगाना चाहिये, जिस अग्नि के सहयोग से वे अपना भोजन बनाते है। अपने जीवनसाथी को उनके जन्मदिनपर उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये चाहे पीतल की हो, सोने-चांदी की हो, परन्तु उसमें नग नहीं लगा रहे|
धनु राशि की अमावस एवं पूनम जो साल में एक एक बार आती है के शुभ दिन हवन एवं अभिषेक धनु राशि का करना चाहिये|हवन में आहुति की जाती है। अपने क्षेत्र के राशिधाम में जाकर यह कार्य कर सकते हो अन्यथा अपने घर पर सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपने क्षेत्र में राशिधाम के निर्माण एवं विस्तार में अपना सहयोग देना न भुले|
धनु राशि में सम्पूर्ण मूल नक्षत्र,सम्पूर्ण पूर्वाषाढा नक्षत्र एवं उत्तराषाढा नक्षत्र का प्रथम चरण आता है। जिनके स्वामी केतू, शुक्र एवं सुर्य है।
1) मूल नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी मंगल है।जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मूल नक्षत्र के पहले चरण में,मंगल के सहयोग से बढ़ेगी। मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई|मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को राशिधाम की पवित्र घड़ी उपहार में देना चाहिये।
2) मूल नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मूल नक्षत्र के दूसरे चरण में,शुक्र के सहयोग से बढ़ेगी। शुक्र का नियंत्रण परिवार में, जीवनसाथी पर है। मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये जीवनसाथी एवं अपने क्षेत्र के सामाजिक स्थानों को राशिधाम की पवित्र घड़ी उपहार में देवे |
3) मूल नक्षत्र के तीसरे का स्वामी बुध है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण मे हुआ है ,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में बुध के सहयोग से बढ़ेगी। बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है। पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन | मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को राशिधाम की पवित्र घड़ी उपहार में देना चाहिये ।
4) मूल नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी “चन्द्रमा है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा मूल नक्षत्र के चौथे चरण में चन्द्रमा के सहयोग से बढ़ेगी। चन्द्रमा का नियंत्रण परिवार में माँ पर है। माँ दो होती है। पहली अपनी स्वयं की माँ तथा दूसरी जीवनसाथी की माँ |मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की माँ को ‘राशिधाम’ की पवित्र घड़ी उपहार में देना चाहिये ।
5) पूर्वाषाढा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी सूर्य है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में हआ है,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पूर्वाषाढा नक्षत्र के पहले चरण में सूर्य के सहयोग से बढ़ेगी।सूर्य का नियंत्रण परिवार में पिता पर है। पिता दो होते है|पहले स्वयं के पिता एव दूसरे जीवनसाथी के पिता। मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपने तथा जीवनसाथी के पिता को राशिधाम की घड़ी उपहार में देना चाहिये|
6) पूर्वाषाढा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी बुध है। जिस मिथुन जातक का जन्म,आर्द्रा नक्षत्र के चौथे दर चरण में हुआ है,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पूर्वाषाढा नक्षत्र के दूसरे चरण मे बुध के सहयोग से बढ़ेगी|बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है। पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन|मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को राशिधाम की घड़ी उपहार में देना चाहिये |
7)पुर्वाषाढा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस मिथुन जातक का जन्म,पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है,उनकी सामाजिक प्रतीष्ठा पूर्वाषाढा नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से बढ़ेगी। शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है। मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये, जीवनसाथी एवं अपने क्षेत्र की स्कूल को राशिधाम की घड़ी उपहार में देना चाहिये।
8) पूर्वाषाढा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा पुर्वाषाढा नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से बढ़ेगी। मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई|मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को राशिधाम की पवित्र घड़ी उपहार में देना चाहिये।
9)उत्तराषाढा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है ,उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा उत्तराषाढा नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से बढ़ेगी। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है। बुजुर्ग दो होते | पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग । मिथुन जातक ने अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को रशिधाम की घड़ी उपहार में देना चाहिये।
सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)