ज्योतिष ज्ञान में जन्म पत्रिका के नवम स्थान को भाग्य स्थान कहते है |इसे समाज में सन््मान का स्थान भी कहते है। इसे व्यापार,उद्योग के विस्तार का बीज स्थान भी कहते है|इसे लाभ से लाभ का स्थान भी कहते है। इसे छोटे बहनोई का स्थान,छोटे भाई की पत्नी का स्थान,जीवनसाथी के छोटे भाई, छोटी बहन का स्थान भी कहते है। इसे बड़े भाई,बड़ी बहन,पुत्रवधु,जवाई राजा से मिलनेवाला लाभ स्थान भी कहते है।इस प्रकार इस स्थान के हजारो लाखो नाम है जो समय के परिवर्तन के साथ उपयोग में आते है।
मिथुन जातक के भाग्य स्थान की राशि कुंभ है। कुंभ राशि की दिशा पश्चिम है। इसलिये मिथुन जातक को भाग्य का साथ अपने जन्म स्थान से पश्चिम दिशा की ओर से मिलेगा|भाग्य का साथ लेने के लिये मिथुन जातक ने प्रतिदिन राशिधाम की घड़ी में स्थित कुम्भ राशि को नमन करना चाहिये अथवा पश्चिम दिशा को नमन करें|
कुंभ राशि की अमावस जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन मिथुन जातक ने कुंभ राशि को आहुति देना चाहिये तथा कुंभ राशि की पूनम जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन मिथुन जातक ने कुंभ राशि का अभिषेक करना चाहिये। अपने क्षेत्र में राशिधाम के निर्माण एवं विस्तार में अपना सहयोग सच्चे मन से देना चाहिये।
कुंभ राशि में धनिष्ठा नक्षत्र के अंतिम दो चरण,सम्पूर्ण शतभिषा नक्षत्र एवं पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के पहले तीन चरण आते है, जिनके स्वामी मंगल,राहु एवं गुरू है।
१) धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है।जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है, उन्हें अपने मानव जीवन में भाग्य का साथ धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगा। शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है|इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में नाम का साथ पाने के लिये, जीवनसाथी को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देना चाहिये|
२) धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है। जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है,उन्हें अपने मानव जीनव में भाग्य का साथ धनिष्ठा नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगा | मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई | इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देवे|
३) शतभिषा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू हैं जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ शतभिषा नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगा। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है| बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग|इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ पाने के लिये अपने तथा जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देवे।
४) शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगा। शनि का नियंत्रण परिवार में कर्मचारियों पर है|कर्मचारी दो होते है। पहले अपने परिवार में काम करनेवाले कर्मचारी एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार में काम करनेवाले|इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मचारियों को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देवे।
५) शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगा|शनि का नियंत्रण प्राणी के कर्मों पर है|परिवार में कर्मवादी प्राणी दो होते है। पहले अपने परिवार के कर्मवादी प्राणी तथा दूसरे जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी प्राणी|इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी प्राणी को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देवे|
६) शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरू हैं जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ शतभिषा नक्षत्र के चौथे चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगा। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है। बुजुर्ग दो होते है।पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देवे |
७) पुर्वाभाद्रपद नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी मंगल है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है,उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के पहले चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगा|मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है|भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई। इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में हे देवे।
८) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दूसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगा।शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है।इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये,जीवनसाथी को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देवे।
९) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी बुध है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुरर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलेगा। बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है। पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन|इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि का लॉकेट उपहार में देवे|
सच्चाई के सेवा में>
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)