ज्योतिष ज्ञान की पगडंडी में जन्म पत्रिका के दसवे स्थान को कर्म स्थान कहते है|इससे प्राणी के जीवन की ऊँचाई का पता लगता है| इसे पिता का स्थान,सासु माँ का स्थान,खर्च से लाभ का स्थान भी कहते है। इसे जीवनसाथी का सुखस्थान,बड़े भाई,बड़ी बहन,पुत्रवधु,जवाई राजा का खर्च स्थान भी कहते है। प्रकार इस स्थान के हजारों हजारों नाम हैं,जो समय के परिवर्तन के साथ उपयोग में आते है।
मिथुन जातक के कर्म स्थान की राशि मीन है। मीन राशि का तत्व जल है। जल में शीतलता रहती है तथा वह उपर से नीचे की ओर बहना है एवं जड़ में जाकर उपर हरियाली देता है|इसलिये मिथुन जातक यदि अपने गृहस्थ जीवन में सफलता पाना चाहते हो तो उन्होंने अपने आप में शीतलता रखना चाहिये तथा अपने कर्मों की जड़ों को मजबूत बनाना चाहिये। कर्मस्थान का महत्व समझने के लिये मिथुन जातक ने अपने कर्म स्थान में राशिधाम की पवित्र घड़ी रखना चाहिये तथा प्रतिदिन उसमें अपनी राशि के दर्शन करके उसे नमन करें|अपने पिताजी एवं सासू माँ को राशिधाम की घडी उपहार में देवे।
मीन राशि की अमावस जो साल में एक बार आती है,के समय मीन राशि को आहुति देवे तथा मीन राशि की पूनम जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन मीन राशि का अभिषेक करें|
मीन राशि में पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का अंतिम चरण,सम्पुर्ण उत्तराभाद्रपद नक्षत्र एवं सम्पुर्ण रेवती नक्षत्र आते है,जिनके स्वामी गुरू,शनि एवं बुध है।
१) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी चन्द्रमा है। जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में सफलता पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण में चन्द्रमा के सहयोग से मिलेगी।चन्द्रमा का नियंत्रण परिवार में माँ पर है|माँ दो होती है।पहली अपनी स्वयं की माँ तथा दूसरी जीवनसाथी की माँ|इसलिये मिथुन जातक ने अपने कर्मों में मनभावक सफलता पाने के लिये अपनी एवं जीवनसाथी की माँ को उनकी राशि की अंगूठी उपहार में देना चाहिये
२) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी सूर्य है। जिस मिथुन जातक का जन्म मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के पिता को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये।
३) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी बुध है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है,उन्हे अपने कर्मों में सफलता उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दूसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलेगी। बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है।बहन दो होती है।पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन|इसलिये मिथुन जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि की अंगुठी उपहार देवे।
४) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है,उन्हे अपने कर्मों में सफलता उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगी|शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है|इसलिये मिथुन जातक ने अपने कर्मों में मनभावक सफलता पाने के लिये,जीवनसाथी को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देवे।
५) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है। जिस मिथुन का जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है,उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों में सफलता उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगी। मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है।पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई|मिथुन जातक ने अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये|
६) रेवती नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। जिस मिथुन जातक का जन्म आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है,उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों में सफलता रेवती नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगी|गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है। बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग|इसलिये मिथुन जातक ने अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये।
७) रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में सफलता रेवती नक्षत्र के पहले चरण में शनि के सहयोग से मिलेगी|शनि का नियंत्रण परिवार में कर्मचारियों पर है। कर्मचारी दो होते है। पहले अपने परिवार में काम करनेवाले कर्मचारी एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार में काम करनेवाले |इसलिये मिथुन जातक ने अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मचारियों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देवे।
८) रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के दुसरे चरण में हुआ है उन्हें अपने कर्मों में सफलता रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगी। शनि का नियंत्रण प्राणी के कर्मों पर है। परिवार में कर्मवादी प्राणी दो होते है। पहले अपने परिवार के कर्मवादी प्राणी तथा दूसरे जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी प्राणी|इसलिये मिथुन जातक अपने कर्मों में सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी सदस्यों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देवे।
९) रेवती नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरू है। जिस मिथुन जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने कर्मों में सफलता रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगी।गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है। बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग|इसलिसे मिथुन जातक ने अपने कर्मों में सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देवे।
सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)