जिनकी जन्म राशि मेष है, उनकी पराक्रम स्थान की राशि मिथुन है। मेष जातक के पराक्रम स्थान की राशि मिथुन का क्षेत्र 60 ते 90 अंशो के मध्य आता है। मेष जातक के पराक्रम की मिथुन राशि की दिशा पश्चिम है। मिथुन राशि की निशानी मनुष्य योनी मे नर एवं मादा है, इसलिये मेष जातक ने अपने मानव जन्म में अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिये प्रतिदिन अपने माता-पिता को नमन करे| जिनके माता-पिता पृथ्वी पर नहीं है अथवा उनसे दूर रहते है उन्होंने उषाःकाल मे पूर्व दिशा को तथा संध्या काल में पश्चिम दिशा को नमन करना चाहिये।
मिथुन राशि की अमावस तथा मिथुन राशि की पूनम जो साल में एक एक बार आती है के शुभ दिन मेष जातक ने अपने पराक्रम स्थान की राशि मिथुन को आहुति देना चाहिये| तथा मिथुन राशि का अभिषेक करें|
मिथुन राशि मे मृगशिरा नक्षत्र के अंतिम दो चरण, सम्पुर्ण आर्द्रा नक्षत्र एवं पुनर्वसु नक्षत्र के पहले तीन चरण आते है।
मृगशिश नक्षत्र के तिसरे चरण का स्वामी शुक्र है। इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उनका पराक्रम मृगशिरा नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से बढ़ेगा। शुक्र का नियंत्रण जीवनसाथी पर है| इसलिये अपने जीवनसाथी का अपमान ना करें|
- मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है। इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है, उनका पराक्रम मृगशिरा नक्षत्र के चौथे चरण में, मंगल के सहयोग से बढ़ेगा| इसलिये अपने तथा जीवन साथी के भाई का अपमान न करे कारण मंगल का नियंत्रण परिवार में भाईपर है।
- आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है, उनका पराक्रम आर्द्रा नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से बढ़ेगा| इसलिये अपने मानव जीवन में किसी के भी धर्म का तथा बुजुर्गों का अपमान न करे|
- आर्द्र नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है| इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उनका पराक्रम आर्द्रा नक्षत्र के दूसरे चरण में शनि के सहयोग से होगा। इसलिये हर पल कर्मवादी बने रहे| किसी भी कर्मचारी का जाने अनजाने मे अपमान न को।
- आर्द्र नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। इसलिये जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के पहले चरण मे हुआ है उनका पराक्रम आर्द्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में शनि के सहयोग से बढेगा| इसलिये किसी भी बेकार प्राणी को कर्मवादी प्राणी बनाने मे अपना सहयोग देवे।
- आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरू है। इसलिये जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उनका पराक्रम आर्द्रा नक्षत्र के चौथे चरण मे गुरू के सहयोग से बढ़ेगा। अपने तथा जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गो का आदर करें| इससे पराक्रम में सफलता मिलेगी।
- पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी मंगल है| इसलिये जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उनका पराक्रम पुनर्वसु नक्षत्र के पहले चरण में मंगल के सहयोग से बढ़ेगा| इसलिये अपने तथा जीवन साथी के भाई का अपमान जाने अनजाने में न करे कारण मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है|
- पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र है। इसलिए जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उनका पराक्रम पुनर्वसु नक्षत्र के दूसरे चरण मे शुक्र के सहयोग से बढ़ेगा| इसलिए जीवन में अपने जीवनसाथी का अपमान न करे। ध्यान रखे शुक्र का नियंत्रण परिवार मे जीवनसाथी पर है।
- पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी बुध है। इसलिये जिनका जन्म कृत्तिका नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उनका पराक्रम पुनर्वसु नक्षत्र के तीसरे चरण में बुध के सहयोग से बढ़ेगा। बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है| बहन दो होती है। पहली स्वयं की और दुसरी जीवनसाथी की| इसलिए अपने पराक्रम में सफलता पाने के लिए जाने अनजाने में अपनी तथा जीवनसाथी की बहन का अपमान न करे|
मेष जातक ने अपने पराक्रम से अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अपने क्षेत्र में राशिधाम के निर्माण एवं विस्तार में अपना सहयोग जीवन के अंतिम तक देना चाहिए।
– सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)