Mesh Rashi aur Jyotish – Navaa Sthan ( Bhagy Sthan )

      जिनकी जन्म राशि मेष है,उनके भाग्य स्थान की राशि धनु है। भाग्य स्थान को लाभ से लाभ मिलने का स्थान, जीवनसाथी के पराक्रम का स्थान, छोटे बहनोई का स्थान, छोटे भाई की पत्नी का स्थान भी कहते है।

      धनु राशि का क्षेत्र 240 अंशो से 270 अंशों के मध्य आता है। धनु राशि में सम्पुर्ण मूल नक्षत्र, सम्पुर्ण पुर्वाषाढा नक्षत्र तथा उत्तराषाढा नक्षत्र का पहला चरण आता है।

      मेष जातक ने अपने मानव जन्म में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये धनु राशि की अमावस जो साल में एकबार आती है के शुभ दिन अपनी राशि मेष के साथ धनु राशि की आहुति देना चाहिए तथा धनु राशि की पुनम जो वर्ष में एकबार आती के शुभ दिन अपनी राशि मेष के साथ धनु राशि का अभिषेक करना चाहिए।

      ध्यान रहे आहुति का विशेष महत्व अमावस के शुभ दिन रहता है तथा अभिषेक का विशेष महत्व पुनम के दिन रहता है। अमावस के शुभ दिन चन्द्रमा सूर्य को अपना समर्पण कर देता है| सुर्य का तत्व  अग्नि है तथा पुनम को सूर्य अपना सम्पुर्ण प्रकाश चन्द्रमा को देता है, जिसमे समुद्र में ज्वारभाटा आता है। चन्द्रमा का तत्व जल है। पुरा संसार अग्नि एवं जल का खेल है|इसलिये आहुति एवं अभिषेक का अपना विशेष महत्व है।

१)    मूल नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी मंगल है| इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है उन्हे अपने भाग्य का साथ मूल नक्षत्र के पहले चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगा| मंगल का  नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है,पहला भाई अपना स्वयं का तथा दूसरा अपने जीवनसाथी का भाई| इसलिये मेष जातक ने अपने भाग्य का साथ पाने के लिए अपने तथा जीवनसाथी के भाई का अपमान जाने अनजाने में न करे। अन्यथा उसे दुर्भाग्य का सामना करना होगा।

२)    मूल नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शुक्र है। इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने भाग्य का साथ मूल नक्षत्र के दूसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगा।शुक्र का नियंत्रण परिवार मे जीवनसाथी पर है|इसलिये मेष जातक ने अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने गृहस्थ जीवन मे जाने अनजाने में अपने जीवनसाथी का अपमान नहीं करना चाहिए, अन्यथा उन्हें दुर्भाग्य का सामना करना होगा।

३)     मूल नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी बुध हैं इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हें अपने भाग्य का साथ मूल नक्षत्र के तीसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलेगा। बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है,पहली बहन खुद की एवं दूसरी बहन जीवनसाथी की बहन। इसलिये मेष जातक ने अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन का अपमान जाने अनजाने में नहीं करना चाहिये|अन्यथा दुर्भाग्य का सामना करना होगा।

४)     मूल नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी चन्द्रमा है। इसलिये जिनका जन्म अश्विनी नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हे अपने भाग्य का साथ, मूल नक्षत्र के चौथे चरण में चन्द्रमा के सहयोग से मिलेगा| चन्द्रमा  का नियंत्रण परिवार में माँ पर है, तथा माँ दो होती हैं पहली अपनी स्वयं की तथा दूसरी अपनी जीवनसाथी की माँ| इसलिये मेष जातक ने अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने गृहस्थ जीवन में अपनी तथा जीवनसाथी की माँ का अपमान जाने अज्जाने में नहीं करना चाहिये| अन्यथा उसे दुर्भाग्य का सामना करना होगा|

५)   पुर्वाषाढा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी सूर्य है। इसलिये जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के पहले चरण मेंके हुआ है,उन्हे अपने भाग्य का साथ पुर्वाषाढा नक्षत्र के पहले चरण में सूर्य के सहयोग से मिलेगा। सूर्य का नियंत्रण परिवार में पिता पर है। पिता दो होते है। पहले पिता स्वयं के तथा दूसरे अपने जीवनसाथी के पिता| इसलिये मेष जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिए अपने तथा जीवनसाथी के पिता का अपमान जाने अनजाने में नहीं करना चाहिये| अन्यथा दुर्भाग्य का सामना करना होगा।

६)    पुर्वाषाढा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी बुध है। इसलिये जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के दूसरे चरण मेंहुआ है उन्हे अपने भाग्य का साथ पूर्वाषाढा नक्षत्र के दूसरे चरण में बुध के सहयोग से मिलेगा। परिवार में बुध का नियंत्रण बहन पर है। बहन दो होती है। पहली स्वयं की तथा दूसरी जीवनसाथी की बहन। कल इसलिये मेष जातक ने अपने भाग्य का साथ पाने के लिए अपनी तथा अपने जीवनसाथी की बहन काअपमान जाने अनजाने में नहीं करना चाहिए, अन्यथा उन्हें दुर्भाग्य का सामना करना होगा।

७)    पुर्वाषाढा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है। इसलिये जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हे अपने भाग्य का साथ पुर्वाषाढा नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगा। गृहस्थ जीवन में शुक्र का नियंत्रण जीवनसाथी पर है। इसलिये मेष जातक ने अपने मानव जीवन में भाग्य का साथ पाने के लिए जाने अनजाने में अपने जीवनसाथी का अपमान नहीं करना चाहिए। अन्यथा उन्हे दुर्भाग्य का सामना करना होगा। ध्यान रहे खुद का अनुभव की सच्चाई है।

८)    पुर्वाषाढा नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है| इसलिये जिनका जन्म भरणी नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है उन्हे अपने भाग्य का साथ पुर्वाषाढा नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगा|मंगल है का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है। पहले अपने स्वयं के तथा दूसरे अपने जीवनसाथी के भाई| इसलिये मेष जातक ने अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने मानव जीवन में अपने तथा तर जीवनसाथी के भाई का अपमान जाने अनजाने में न करें अन्यथा उन्हें दुर्भाग्य का सामना करना ही होगा।

९)    उत्तराषाढा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। इसलिये जिनका जन्म कृत्तिका नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है,उन्हें अपने भाग्य का साथ उत्तराषाढा नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगा। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों एवं संस्कारो पर है। बुजुर्ग दो होते है। पहले स्वयं के परिवार के तथा दूसरे अपने जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग| इसलिये मेष राशि के जातक ने अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने तथा जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों का एवं उनके संस्कारों का अपमान नहीं करना चाहिए। अन्यथा उन्हें दुर्भाग्य का सामना करना होगा| ध्यान रहे कर्म श्रेष्ठ है एवं बुद्धी गौण।

– सच्चाई के सेवा में
 ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)


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