ज्योतिष ज्ञान के सागर में कर्क राशि का नम्बर चौथा है | कर्क राशि, मिथुन राशि के बाद एवं सिंह राशि के पहले आती है। कर्क जातक का बलवान समय प्रतिदिन ४ से ५ का रहता है। नर प्राणी के लिये सूर्य के शासन में तथा मादा प्राणी के लिये चन्द्रमा के शासन में ।
कर्क राशि का स्वामी चन्द्रमा है । परिणाम कर्क जातक का स्वभाव चंचल रहता है । कर्क राशि चर राशि है, इसलिये जब तक कर्क जातक किसी बात को समझ नहीं लेता है तब तक उस पर चर्चा करता रहता है | तथा बात समझ में आनेपर अपने विचारों में परिवर्तन भी कर लेता है ।
कर्क जातक ने अपने मानव जीवन में मनमाफिक सफलता पाने के लिये हमेशा अपने घर एवं कार्यालय में राशिधाम की घड़ी रखना चाहिये तथा प्रतिदिन नहाने के बाद राशिधाम की घड़ी में स्थित अपनी राशि कर्क दर्शन करके उसे अपनी राशि का पवित्र इत्र अथवा अपनी राशि की अगरबत्ती लगाकर सच्चे मन से नमन करना चाहिये।
कर्क राशि की अमावस जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन कर्क जातक ने अपनी राशि कर्क को आहुति देना चाहिये तथा कर्क राशि की पूनम जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन कर्क जातक ने कर्क राशि का अभिषेक करना चाहिये।
कर्क राशि में पुनर्वसु नक्षत्र का चौथा चरण ,सम्पूर्ण पुष्य नक्षत्र एवं सम्पूर्ण आश्लेषा नक्षत्र आते है,जिनके स्वामी गुरू, शनि एवं बुध है ।
1) जिनका जन्म कर्क राशि में पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उनका मन धार्मिक एवं चंचल रहता है। मन में शीतलता रहती है। पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी चन्द्रमा है। ऐसे प्राणी अपने गृहस्थ जीवन में अपनी माँ तथा जीवनसाथी की माँ का आदर करते है । चन्द्रमा के शासन में इनके मन में नया उत्साह रहता है । बढ़ते चन्द्रमा के समय इनकी मानसिक उर्जा बढ़ती है तथा घटते चन्द्रमा के समय इनमें उत्साह कुछ कम रहता है । जीवन में सफलता पाने के लिये इन्होंने अपनी तथा जीवनसाथी की माँ को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये ।
2) जिनका जन्म कर्क राशि में, पुष्य नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, वे अपने गृहस्थ जीवन में अपने क्षेत्र का नेतृत्व करते है । पुष्य नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी सूर्य है। सूर्य का नियंत्रण परिवार में पिता पर है। पिता दो होते है। पहले स्वयं के पिता एवं दूसरे जीवनसाथी के पिता | जीवन में सफलता पाने के लिये ऐसे कर्क जातक ने अपने एवं जीवनसाथी के पिताजी को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये।
3) जिनका जन्म कर्क राशि में पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है उनका मन हमेशा व्यापार एवं उद्योग में लगा रहता है | कारण पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी बुध है। बुध का नियंत्रण व्यापार, उद्योग एवं व्यवहार पर है | इसलिये कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने उद्योगों मे मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देवे | ध्यान रहे बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है । पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन |
4) जिनका जन्म कर्क राशि में, पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है, उनका मन वैभवशाली रहता है। अपने हर कर्म में वैभव रखते है | उनकी बातें, उनका व्यवहार वैभवशाली रहता है। पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है । शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी पर है | कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में वैभवशाली सफलता पाने के लिये, जीवनसाथी को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये।
5) जिनका जन्म कर्क राशि में, पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है उनके मन में अपना कार्य करने की उर्जा हर पल रहती है। ऐसा जातक अपनी मानसिक उर्जा के सहयोग से मनमाफिक सफलता पाता है। ऐसे जातक ने अपने गृहस्थ जीवन को उर्जावान बनाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि का इत्र उपहार में देना चाहिये। पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है | मंगल का नियंत्रण अपने एवं जीवनसाथी के भाई पर है।
6) जिनका जन्म कर्क राशि में आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है उनका मन धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में विशेष रूची रखता है। आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। गुरू का नियंत्रण सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों पर है। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है । बुजुर्ग दो होते है । पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग । ऐसे जातक ने अपने जीवन में सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि का इत्र उपहार में देना चाहिये।
7) जिनका जन्म कर्क राशि में आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है, उनका मन हमेशा नये नये कार्य करने में लगा रहता है । जातक अपने मन में कर्मवादी बना रहता है एवं अपनी अलग पहचान समाज में बना लेता है। आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है। शनि का नियंत्रण परिवार में कर्मचारियों पर है। कर्मचारी दो होते है। पहले अपने परिवार में काम करनेवाले कर्मचारी एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार में काम करनेवाले | इसलिये कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों में सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मचारियों को उनकी राशि का इत्र उपहार में देना चाहिये ।
8) जिनका जन्म कर्क राशि में आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है, उनका मन कर्मवादी प्राणियों से प्रेरणा लेने में लगा रहता है। आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। शनि का नियंत्रण कर्मवादी प्राणियों पर है। कर्मवादी प्राणी दो होते है। एक अपने परिवार के कर्मवादी प्राणी तथा दूसरे अपने जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी प्राणी | कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने कर्मों में मनमाफिक सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी प्राणियों को उनकी राशि का पवित्र इत्र उपहार में देना चाहिये ।
9) जिनका जन्म कर्क राशि में आश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है वे मन से धार्मिक रहते है। अपने गृहस्थ जीवन मे प्रकार के सामाजिक एवं धार्मिक कार्य करते है। वे अपने गृहस्थ जीवन में समाज सेवक के स्वरूप में अपनी पहचान बनाना चाहते है एवं समय के परिवर्तन के साथ उनकी अपनी अलग पहचान समाज में बन जाती है| ऐसे जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में सफलता पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि का इत्र उपहार में देना चाहिये।
– सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)