ज्योतिष ज्ञान की गंगा में जन्म पत्रिका के नवाँ स्थान को भाग्य स्थान कहते है। इसे लाभ से लाभ का स्थान भी कहते है। इसे छोटे बहनोई तथा छोटे भाई की पत्नी का स्थान भी कहते है। इसे जीवनसाथी के छोटे भाई एवं छोटी बहन का स्थान भी कहते है । इस प्रकार जन्म पत्रिका में नवम स्थान को हजारों हजारों नाम है,जो समय के परिवर्तन के साथ समय समय पर उपयोग में आते है।
कर्क जातक के भाग्य स्थान की राशि मीन है। मीन राशि की दिशा उत्तर है। स्वभाव द्विस्वभाव है। तत्व जल है तथा यह स्त्री राशि है। इसलिये कर्क जातक को भाग्य का साथ उत्तर दिशा से, जल तत्व की वस्तुओं से, महिला पक्ष से सूर्य एवं चन्द्रमा के शासन में मिलेगा । कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ पाने के लिये अपने छोटे बहनोई, छोटे भाई की पत्नी, जीवनसाथी के छोटे भाई, छोटी बहन को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये ।
मीन राशि की अमावस जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन कर्क जातक ने मीन राशि आहुति देना २५३ तथा मीन राशि की पूनम जो साल में एक बार आती है के शुभ दिन मीन राशि का को अभिषेक करना चाहिये ।
मीन राशि का क्षेत्र 330 अंशो से 360 अंशों के मध्य आता है | परिणाम मीन जातक को अपने भाग्य का साथ उपरोक्त अंशो में आनेवाले क्षेत्रों से विशेष रूप में मिलेगा | भाग्य का विशेष साथ पाने के लिये कर्क जातक ने अपने घर से उत्तर दिशा में राशिधाम के निर्माण एवं विस्तार में अपना सहयोग देना चाहिये |
मीन राशि में पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का चौथा चरण, सम्पूर्ण उत्तराषाढा नक्षत्र एवं सम्पूर्ण रेवती नक्षत्र आते है जिनके स्वामी गुरू, शनि एवं बुध है।
1) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी चन्द्रमा है। जिस कर्क जातक का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हें अपने भाग्य का साथ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण में चन्द्रमा के सहयोग से मिलेगा | चन्द्रमा का नियंत्रण परिवार में माँ पर है। माँ दो होती है। पहली अपनी स्वयं की माँ तथा दूसरी जीवनसाथी की माँ । कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपनी एवं जीवनसाथी की माँ को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये।
2) उत्तराभाद्रपदा नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी सूर्य हैं जिस कर्क जातक का जन्म पुष्य नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उन्हे अपने भाग्य का साथ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के पहले चरण में सूर्य के सहयोग से मिलेगा। सूर्य का नियंत्रण परिवार में पिता पर है। पिता दो होते है। पहले स्वयं के पिता एवं दूसरे जीवनसाथी के पिता | कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के पिता को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये।
3) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी बुध है। जिस कर्क जातक का जन्म पुष्य नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है, उन्हे अपने गृहस्थ जीवन में भाग्य का साथ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के दूसरे चरण में बुध हे सहयोग से मिलेगा । बुध का नियंत्रण परिवार में बहन पर है। बहन दो होती है। पहली अपनी स्वयं की बहन एवं दूसरी जीवनसाथी की बहन | कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपनी तथा जीवनसाथी की बहन को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये
4) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शुक्र है। जिस कर्क जातक का जन्म पुष्य नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है उन्हें अपने भाग्य का साथ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तीसरे चरण में शुक्र के सहयोग से मिलेगा | शुक्र का नियंत्रण परिवार में जीवनसाथी तथा मित्रों पर है । कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये, जीवनसाथी एवं मित्रों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये।
5) उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी मंगल है । जिस कर्क जातक का जन्म पुष्य नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हें अपना भाग्य का साथ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के चौथे चरण में मंगल के सहयोग से मिलेगा । मंगल का नियंत्रण परिवार में भाई पर है। भाई दो होते है । पहले अपने स्वयं के भाई तथा दूसरे जीवनसाथी के भाई | कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के भाई को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये |
6) रेवती नक्षत्र के पहले चरण का स्वामी गुरू है। जिस कर्क जातक का जन्म आश्लेषा नक्षत्र के पहले चरण में हुआ है, उन्हें अपने भाग्य का साथ रेवती नक्षत्र के पहले चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगा। गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है। बुजुर्ग दो होते है। पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग । कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये । ध्यान रहे कर्म श्रेष्ठ है एवं बुद्धी गौण ।
7) रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस कर्क जातक का जन्म आश्लेषा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ है, उन्हें अपने भाग्य का साथ रेवती नक्षत्र के दूसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगा। शनि का नियंत्रण परिवार में कर्मचारियों पर है। कर्मचारी दो होते है। पहले अपने परिवार में काम करनेवाले कर्मचारी एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार में काम करनेवाले | कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मचारियों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देना चाहिये ।
8) रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण का स्वामी शनि है। जिस कर्क जातक का जन्म आश्लेषा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में शनि के सहयोग से मिलेगा । शनि का नियंत्रण प्राणी के कर्मों पर है । परिवार में कर्मवादी प्राणी दो होते है ।पहले अपने परिवार के कर्मवादी प्राणी तथा दूसरे जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी प्राणी | कर्क जातक ने अपने मानव जीवन में अपने भाग्य का साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के कर्मवादी सदस्यों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देवे ।
9) रेवती नक्षत्र के चौथे चरण का स्वामी गुरू है। जिस कर्क जातक का जन्म आश्लेषा नक्षत्र के चौथे चरण में हुआ है, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन में अपने भाग्य का साथ रेवती नक्षत्र के चौथे चरण में गुरू के सहयोग से मिलेगा । गुरू का नियंत्रण परिवार में बुजुर्गों पर है । बुजुर्ग दो होते है । पहले अपने परिवार के बुजुर्ग एवं दूसरे जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्ग । कर्क जातक ने अपने गृहस्थ जीवन में अपने का भाग्य साथ पाने के लिये अपने एवं जीवनसाथी के परिवार के बुजुर्गों को उनकी राशि की अंगुठी उपहार में देवे ।
– सच्चाई के सेवा में
ज्योतिषसम्राट व्ही. तेलवाले
(राशिधाम)